Sarangarh News : छत्तीसगढ़ सरकार (Saria Bjp) का दावा है कि प्रदेश में शिक्षकों और विद्यार्थियों का अनुपात राष्ट्रीय अनुपात से बेहतर है। छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा विभाग के दावों के अनुसार देश में 26 विद्यार्थियों के पीछे एक शिक्षक हैं।
जबकि प्रदेश में 21 विद्यार्थियों के पीछे एक शिक्षक है। जबकि जमीनी हकीकत यह है कि कुछ स्कूलों में जहां विषय संकाय है। वहां शिक्षक नहीं है जहां विषय संकाय नहीं है वहां शिक्षक हैं। कुछ स्थानों पर राज्य के अनुपात से भी बहुत कम विद्यार्थियों पर शिक्षक है। कुछ स्थानों पर तो 4-5 विद्यार्थी पर एक शिक्षक हैं। इसका खामियाजा प्रदेश के गरीब तबके के बच्चों को उठानी पड़ रही है।
ऐसा ही हाल प्रदेश के नवगठित सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले के बरमकेला जनपद पंचायत क्षेत्र का है। इन्हीं समस्याओं को लेकर बुधवार को भाजपा (Saria Bjp) का एक प्रतिनिधि मंडल जिला शिक्षा अधिकारी एलपी पटेल से मुलाकात कर इन समस्याओं से अवगत कराते हुए इन्हें दूर रखने की मांग की है।
भाजपा नेताओं ने डीईओ को बताया कि सारंगढ़ बिलाईगढ़ अंतर्गत विकास खण्ड बरमकेला के कई स्कूलों में दर्ज संख्या अधिक है, लेकिन छात्रों के अनुपात में शिक्षकों की कमी है, जिससे पढ़ाई प्रभावित हो रही है।
माध्यमिक विद्यालय नौघटा एवं आसपास के कई स्कूलों में शिक्षकों की कमी है, जिसे ध्यान में रखते हुए अविलंब शिक्षक व्यवस्था कर समस्या का निदान करने की मांग करते हुए सरिया भाजपा (Saria Bjp) मण्डल महामंत्री द्वय राधामोहन पाणिग्राही, चूड़ामणि पटेल, उपाध्यक्ष गजपति डनसेना, जिला संयोजक शिक्षा प्रकोष्ठ जुगल किशोर अग्रवाल, जिला कार्यकारिणी सदस्य शुकदेव दुआन और सुरेन्द्र प्रधान ने ज्ञापन सौंपा है।
बता दें कि छत्तीसगढ़ सरकार ने शिक्षकों व बच्चों की अनुपात को बराबर करने के लिए युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया शुरू की थी। सरकार की मंशा थी कि ऐसे स्कूलों का चिन्हांकन किया जाएगा। जहां अनुपात में ज्यादा अंतर होगा। इसके बाद सभी स्कूलों में शिक्षकों की पदस्थापना कर दी जाएगी। इससे सभी स्कूलों में शिक्षक उपलब्ध हो जाएंगे और शिक्षा का स्तर और भी अच्छा हो जाएगा।
लेकिन शिक्षकों व शिक्षक संघ के विरोध के बाद युक्तियुक्तकरण का मामला ठंडे बस्ते में चला गया है। सरकार के सारे दावे हवा में उड़ गए और अब इसका खामियाजा गरीब तबके के बच्चों को उठाना पड़ रहा है। दरअसल, अमीर और मिडिल क्लास परिवार अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ा रहे हैं, लेकिन फीस महंगी होने की वजह से गरीब परिवार अपने बच्चों को दाखिला नहीं दिलवा पाते और मजबूरन में सरकारी स्कूल में पढ़ाते हैं।