Wednesday, March 26, 2025
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Renuka Singh : भाजपा का दोहरा चेहरा : परिवारवाद के विरोध की बात, लेकिन अपनों को ही दे रही टिकट

Chhattisgarh News : भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) हमेशा से विपक्षी दलों (Renuka Singh) खासकर कांग्रेस पर परिवारवाद के नाम पर हमलावर रही है। लेकिन जब खुद पर बात आती है, तो पार्टी उसी परिवारवाद के दायरे में सिमटती नजर आती है। छत्तीसगढ़ के त्रिस्तरीय पंचायत और नगरीय निकाय चुनावों में भाजपा  ने अपने ही नेताओं के बेटा-बेटी को प्रत्याशी बनाकर यह साबित कर दिया है कि उसका ‘परिवारवाद के विरोध’ का दावा केवल दिखावा है।

इस बार अविभाजित सरगुजा क्षेत्र की राजनीति में दो बड़े नाम चर्चा में हैं— रेणुका सिंह (Renuka Singh) की बेटी मोनिका सिंह और पूर्व विधायक स्व. रविशंकर त्रिपाठी के बेटे राहुल त्रिपाठी (सन्नी)। दोनों ही युवा प्रत्याशी राजनीति में कदम रख रहे हैं, लेकिन भाजपा का यह फैसला उसके ही ‘परिवारवाद-विरोधी’ दावों की पोल खोल रहा है।

परिवारवाद का नया अध्याय : मोनिका सिंह की एंट्री

भाजपा की वरिष्ठ नेता, पूर्व केंद्रीय मंत्री और वर्तमान में भरतपुर-सोनहत की विधायक रेणुका सिंह (Renuka Singh) की बेटी मोनिका सिंह ने सूरजपुर (Surajpur) जिले के जिला पंचायत क्षेत्र क्रमांक 15 (रामानुजनगर तृतीय) से जिला पंचायत सदस्य का नामांकन खरीदा है। दिलचस्प बात यह है कि यह वही क्षेत्र है जहां से उनकी मां ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी और विधायक बनने के बाद मंत्री पद तक पहुंची थीं।

अब सवाल यह है कि क्या भाजपा (BJP) अपने ही परिवारवाद के सिद्धांत को तोड़ रही है? विपक्षी दलों पर परिवारवाद को लेकर हमला करने वाली भाजपा के लिए यह एक ‘परीक्षा’ का समय है, जिसमें वह खुद विफल होती दिख रही है।

राहुल त्रिपाठी को भी मिला टिकट, भाजपा की कथनी और करनी में अंतर

परिवारवाद के इस खेल में दूसरा नाम राहुल त्रिपाठी (सन्नी) का है, जो स्व. रविशंकर त्रिपाठी के पुत्र हैं। भाजपा ने उन्हें अंबिकापुर नगर निगम के ब्रम्ह वार्ड से पार्षद पद का टिकट दिया है। राहुल त्रिपाठी बीई सिविल डिग्री धारक हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि भाजपा को इस पद के लिए क्या कोई अन्य योग्य उम्मीदवार नहीं मिला?

भाजपा (Renuka Singh) के लिए यह निर्णय विपक्ष के लिए एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है, क्योंकि पार्टी खुद कांग्रेस और अन्य दलों पर परिवारवाद को लेकर हमलावर रही है। लेकिन अब जब खुद भाजपा अपने ही नेताओं के बेटा-बेटी को चुनावी मैदान में उतार रही है, तो उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजमी है।

क्या भाजपा का ‘परिवारवाद विरोध’ महज एक राजनीतिक हथियार था?

भाजपा (Renuka Singh) हमेशा से कांग्रेस पर यह आरोप लगाती रही है कि वह गांधी-नेहरू परिवार से बाहर नहीं निकल पाई है। लेकिन छत्तीसगढ़ में स्थानीय चुनावों में खुद भाजपा ने अपनों को ही टिकट देकर यह साबित कर दिया है कि उसका परिवारवाद विरोध सिर्फ एक दिखावा है।

इससे पहले भी भाजपा ने कई मौकों पर परिवारवाद के खिलाफ आवाज उठाई, लेकिन जब मौका मिला तो उसने भी परिवार के लोगों को प्राथमिकता देने में देर नहीं की।

 

 

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