Raipur News : अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में किए गए शोध से ज्ञात हुआ है कि प्रदेश के शहरी क्षेत्रों में रह रहे बच्चों को त्वचा की एलर्जी की अधिक संभावना होती है।Atopic Eczemaइन बच्चों में 30 प्रतिशत तक त्वचा संबंधी एलर्जी की गंभीर स्थिति देखने को मिली।
त्वचा रोग विभाग की सह-प्राध्यापक डॉ. नम्रता छाबड़ा शर्मा और पीडियाट्रिक्स विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. अनिल गोयल के निर्देशन में पीजी छात्रा डॉ. पी.एस. मेघना रेड्डी के शोध में दिसंबर 2021 से मई 2023 तक यह अध्ययन किया गया। अध्ययन में 200 बच्चों से एकत्रित किए गए डेटा के अनुसंधान से ज्ञात हुआ है कि उन्हें एटोपिक एक्जिमा (Atopic Eczema) की संभावना अधिक होती है।
इनमें से 77 प्रतिशत शहरी क्षेत्रों के बच्चे हैं। 30 प्रतिशत ऐसे बच्चे पाए गए जो औद्योगिक क्षेत्र के आसपास ही रहते हैं। विभाग की सह-प्राध्यापक डॉ. नम्रता छाबड़ा शर्मा के अनुसार प्रदेश में बच्चों में त्वचा संबंधी एलर्जी की बढ़ती संख्या चिंताजनक है क्योंकि यहां जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा औद्योगिक क्षेत्र के आसपास ही रहता है।
डॉ. शर्मा ने बताया कि एटोपिक एक्जिमा (Atopic Eczema) त्वचा संबंधी एलर्जी होती है जिसमें खुजली के साथ त्वचा पर लाल रंग के चक्कत्ते पड़ जाते हैं। दुनिया के विभिन्न हिस्सों में एटोपिक एक्जिमा लगातार बढ़ रहा है यह बच्चों में 20 प्रतिशत तक और बड़ों में तीन प्रतिशत तक पाया जाता है।
डॉ. शर्मा के अनुसार भारत में पिछले चार दशकों में औद्योगिकरण की वजह से एटोपिक एक्जिमा निरंतर बढ़ा है। बच्चों में इसकी संभावना अधिक होती है जो बड़े होने पर उनमें अस्थमा, अन्य प्रकार की एलर्जी या फूड एलर्जी में भी परिवर्तित हो सकती है।
अन्य देशों में हुए शोध के अनुसार सल्फर डाइ आक्साइड, कार्बन मोनोआक्साइड और नाइट्रोजन डाइ आक्साइड के साथ पार्टिकुलेट मेटर भी एटोपिक एक्जिमा के कारण हो सकते हैं। यह वातारवरण में काफी समय तक रहते हैं और शरीर में सांस या त्वचा के माध्यम से प्रवेश कर सकते हैं। प्रदेश में स्पंज आयरन उद्योग से बड़ी संख्या में इन वायु प्रदूषक कणों का उत्सर्जन संभव है।
यह शोध ओब्जर्वेशनल है। इस दिशा में कारणों को जानने के लिए औद्योगिक क्षेत्र से हो रहे वायु प्रदूषण और इसके त्वचा पर दुष्प्रभावों के बारे में विस्तृत शोध की आवश्यकता बताई गई है।