Bhopal News : नई दिल्ली में गणतंत्र दिवस परेड (Republic Day 2025 Jhanki) के दौरान मध्यप्रदेश की आकर्षक झांकी में कूनो पालपुर राष्ट्रीय उद्यान में चीतों की वापसी की झलक पेश की जाएगी।
भारत में चीतों की वापसी एक अंतरमहाद्वीपीय वन्यजीव स्थानांतरण की ऐतिहासिक पहल है। यह 1950 के दशक में विलुप्त हो चुके चीतों की आबादी को पुनर्स्थापित करने में भारत की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। अफ्रीका से स्वस्थ चीतों का परिवहन भारत के वन्यजीव संरक्षण के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ है।
भारत में 17 सितंबर 2022 को आठ चीतों का पहला समूह आया, जिसमें 5 मादाएं और 3 नर चीते शामिल थे। इन्हें नामीबिया से कूनो राष्ट्रीय उद्यान, श्योपुर में स्थानांतरित किया गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इन चीतों को कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ने की प्रक्रिया की निरंतर निगरानी की।
इसके बाद, 18 फरवरी 2023 को दक्षिण अफ्रीका से दूसरा समूह आया, जिसमें 12 चीते (7 नर और 5 मादा) थे। “प्रोजेक्ट चीता” एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक उपलब्धि है, जो राष्ट्रीय गौरव की पुनर्स्थापना में योगदान दे रहा है और भारत के वन्यजीव संरक्षण प्रयासों के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ता है।
चीते को भारत में पुनर्स्थापित करने से पहले उनके लिए उपयुक्त आवास का चयन करने के लिए सावधानीपूर्वक योजना बनाई गई।
ईरान में एशियाई चीते (Republic Day 2025 Jhanki) के अस्तित्व की कमी को देखते हुए, विश्वभर के प्रमुख संरक्षणवादियों और आनुवंशिकीविदों से सलाह ली गई। दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से लाए गए उप-प्रजातियों को सबसे उपयुक्त माना गया, जो स्थिर और पर्याप्त आबादी का समर्थन करते हैं।
भारत में चीतों का आगमन (Republic Day 2025 Jhanki)
भारतीय वन्यजीव संस्थान ने 2022 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के मार्गदर्शन में एक व्यापक वैज्ञानिक कार्य योजना तैयार की। यह ऐतिहासिक पहल अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) के दिशा-निर्देशों के अनुरूप है, जो मांसाहारी प्रजातियों के स्थानांतरण के लिए एक रणनीतिक और पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण को सुनिश्चित करती है।
भारत में चीते (Republic Day 2025 Jhanki) की वापसी की पहल सिर्फ एक परियोजना नहीं है, बल्कि उनके मौलिक रहवासों के पुनर्स्थापना का एक वैज्ञानिक प्रोटोटाइप है। यह ग्रासलैंड पारिस्थितिकी को पुनर्जीवित करने और स्थानीय जैव-विविधता का संरक्षण करने की पहल है।
चीते की वापसी की योजना ने ऐतिहासिक जैव पारिस्थितिकी के नाजुक संतुलन को बनाये रखने के लिए एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य किया है। इसके लिये उपयुक्त रहवास स्थलों की पहचान करने में मध्य भारत के दस स्थानों का सर्वेक्षण किया गया।
इन स्थानों में से मध्यप्रदेश (Republic Day 2025 Jhanki) का कूनो पालपुर राष्ट्रीय उद्यान सबसे उपयुक्त पाया गया। कुल 748 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला कूनो राष्ट्रीय उद्यान न केवल उपयुक्त रहवास है, अपितु यहाँ चीतों के लिए पर्याप्त शिकार भी उपलब्ध हैं। साथ ही यह स्थान मानवीय गतिविधियों से मुक्त है।
पूर्व प्रयास (Republic Day 2025 Jhanki)
1952 में भारत सरकार ने चीते की दयनीय स्थिति को समझ लिया था और उसे विशेष संरक्षण देने का संकल्प लिया था। इसके बाद 1970 के दशक में ईरान से एशियाई चीते लाने की बातचीत असफल रही। भारत में चीतों की वापसी की कहानी एक घुमावदार कहानी है, जो 1950 के दशक में प्रजातियों के विलुप्त होने तक जाती है।
आधिकारिक प्रयास 1970 के दशक में शुरू हुए, जिसमें ईरान और उसके बाद केन्या से बातचीत शुरू हुई। वर्ष 2009 में, भारत ने अफ्रीकी चीतों के लिए प्रस्ताव रखा। वर्ष 2020 में एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए सीमित संख्या में चीते लाने की अनुमति मिली, ताकि उनकी भारतीय पर्यावरण में रहने की क्षमता का परीक्षण किया जा सके।
विलुप्ति से आबादी की ओर (Republic Day 2025 Jhanki)
चीता (Republic Day 2025 Jhanki) अपनी आकर्षक छवि के लिए जाना जाता है। इसका नाम “चीता” मूल रूप से संस्कृत से जुड़ा है, जिसका अर्थ है “धब्बेदार।” इसका उल्लेख प्राचीन भारतीय धर्म ग्रंथ जैसे ऋग्वेद और अथर्ववेद में मिलता है। मध्यभारत की निओलिथिक गुफाओं में इसके चित्र मिलते हैं।
वर्ष 1952 में चीता ने भारत को अलविदा कहा। कई कारणों से वे विलुप्त हो गए। शिकार के लिए बड़े पैमाने पर पकड़, पुरस्कार के लिये एवं शौकिया शिकार, आवास का खत्म होना और उनके शिकारों की उपलब्धता समाप्त होना मुख्य कारण बताए गए।
बीसवीं सदी में, संरक्षण उपायों की कमी के कारण चीते की आबादी में गिरावट आई, जिससे इस शानदार जीव की स्थिति और अधिक खराब हो गई। एशिया में चीते ने अपने रहवास के क्षेत्र से बाहर हो जाने का सामना किया, जो भू-मध्यसागरीय और अरबी प्रायद्वीप से लेकर केस्पियन तक फैला था और उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और मध्य भारत तक पहुंचता था।
जंगली शिकार की कमी, सीधे शिकार और आवास का खत्म होना उनके गायब होने का कारण बने। अब एशियाई चीता, जो “गंभीर रूप से संकटग्रस्त” सूची में है, केवल ईरान में बचा हुआ है।