Mahasamund News : आज भी ज्यादातर किसान परंपरागत खेती कर रहे हैं, लेकिन बढ़ते खर्चों और कम मुनाफे के चलते कुछ किसान परंपरागत खेती छोड़ आधुनिक खेती का रुख कर रहे हैं. जिससे किसानों को लाखों का लाभ मिल रहा है. ऐसे ही एक किसान हैं महासमुंद जिले के पठियापाली निवासी राजेन्द्र साहू उर्फ राज जो परंपरागत खेती के अलावा मशरूम की खेती (Mushroom Farming) कर महीने में लाखों कमा रहे हैं.
राजेन्द्र साहू को मशरूम की खेती करते काफी लंबा अरसा हो गया है. वर्ष 2005 से मशरूम की खेती कर रहे हैं. महासमुंद जिला मुख्यालय से लगभग 102 किमी. दूर नेशनल हाईवे पर स्थित संजय बिहारी ढाबा के सामने भंवरपुर मार्ग पर पठियापाली गांव है. पठियापाली गांव में ही किसान राजेन्द्र साहू मशरूम की खेती करते हैं.
राजेन्द्र साहू के पिता वेणुधर साहू रिटायर्ड कृषि विस्तारक अधिकारी हैं. जिनका भरपूर मार्गदर्शन मिलता है. राजेन्द्र साहू 20-25 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं. राजेन्द्र साहू कृषि की पढ़ाई नहीं किए हैं लेकिन पांच विषयों में स्नातकोत्तर डिग्री हासिल कर चुके हैं. मशरूम की खेती (Mushroom Farming) करने में रुचि थी इसलिए इस फील्ड को चुने हैं.
मशरूम की खेती (Mushroom Farming) करने वाले किसान राजेन्द्र कुमार साहू ने बताया कि मशरूम की खेती करके काफी अच्छा मुनाफा मिल रहा है. पैरा जिसे खेतों में जला दिया जाता था इसका भरपूर उपयोग मशरूम की खेती में हो रहा है. पैरा मशरूम यानी पैरा फुटू का फसल चक्र 15 दिनों का होता है. 30 से लेकर 60 दिन तक आयस्टर मशरूम का फसल चक्र चलता है. जिसमें 3 से 5 गुना मुनाफा हो जाता है.
बाद में पैरा कम्पोस्ट के रूप में काम आता है. जिससे खेतों में डालने के बाद खाद की खपत कम हो जाती है. इससे कृषि में लागत एक चौथाई हो गई है. मार्च से अक्टूबर महीने में पैरा मशरूम की खेती ज्यादा होती है. महीने में औसतन आमदनी सभी खर्चों को काटकर डेढ़ से दो लाख रुपए की होती है. कभी ज्यादा भी हो जाता है.