रामानुजगंज: जहां एक तरफ रामचंद्रपुर विकासखंड के शिक्षकों में 27 साल के लंबे इंतजार के बाद 7 व्याख्याताओं को प्राचार्य पद पर पदोन्नति मिलने की खुशी है, वहीं दूसरी ओर इसी शिक्षा तंत्र (Education Department) में कार्यरत खंड शिक्षा अधिकारी (बीईओ) सदानंद कुशवाहा की नियुक्ति पर उठा विवाद इस खुशी को फीका कर रहा है। वर्ष 2013 बैच के व्याख्याता रहे कुशवाहा को कांग्रेस शासनकाल के दौरान 2023 में बीईओ के महत्वपूर्ण पद पर पदस्थ किया गया था, और अब यह नियुक्ति सवालों के घेरे में आ गई है।
वरिष्ठता दरकिनार कर की गई नियुक्ति पर सवाल
सूत्रों के अनुसार, जब सदानंद कुशवाहा को बीईओ बनाया गया था, तब रामचंद्रपुर विकासखंड में उनसे सैकड़ों वरिष्ठ व्याख्याता मौजूद थे। इन सभी योग्य और अनुभवी शिक्षकों को नजरअंदाज कर, कुशवाहा को यह पदोन्नति (Education Department) दी गई, जो नियमों और वरिष्ठता क्रम का उल्लंघन प्रतीत होता है। बताया जा रहा है कि वे मूल रूप से वाड्रफनगर विकासखंड में लेक्चरर के पद पर थे। चौंकाने वाली बात यह है कि जब पूरे प्रदेश में युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया के तहत शिक्षकों के स्थानांतरण और पदस्थापन हो रहे थे, तब कुशवाहा इस प्रक्रिया से पूरी तरह अछूते रहे। इस विशेष व्यवहार ने शिक्षा विभाग के भीतर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
कार्यालय में भ्रष्टाचार और शोषण के आरोप
बीईओ सदानंद कुशवाहा के कार्यकाल को लेकर शिक्षकों में भारी नाराजगी है। विभिन्न शिक्षक संगठनों का आरोप है कि बीईओ कार्यालय में छोटे-छोटे कामों के लिए भी रिश्वत देनी पड़ती है। शिक्षकों का यह भी कहना है कि उनके कार्यकाल में शोषण की घटनाएं बढ़ी हैं। हालांकि, डर और बदले की कार्रवाई की आशंका के चलते कोई भी शिक्षक खुलकर शिकायत नहीं कर रहा है।
शिक्षकों का मानना है कि सरकार बदलने के बाद भी कुशवाहा का अपने पद पर बने रहना कई सवाल खड़े करता है, खासकर तब जब उनकी नियुक्ति पर ही प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है। शिक्षक (Education Department) संगठनों ने सरकार और प्रशासन से इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की है। उनका कहना है कि दोषियों पर कार्रवाई होनी चाहिए ताकि शिक्षा विभाग की गरिमा बनी रहे और ईमानदारी से काम करने वाले शिक्षकों का मनोबल न गिरे।
यह स्थिति दिखाती है कि शिक्षा विभाग (Education Department) में पारदर्शिता और योग्यता के आधार पर नियुक्तियां कितनी जरूरी हैं। यदि वरिष्ठता और नियमों को ताक पर रखकर पदस्थापन किए जाते हैं, तो इसका सीधा असर शिक्षा की गुणवत्ता और शिक्षकों के मनोबल पर पड़ता है। इस मामले की गहन जांच होनी चाहिए ताकि शिक्षा के क्षेत्र में विश्वास और निष्पक्षता बहाल हो सके।
