इस बार धान के इर्द-गिर्द नहीं भ्रष्टाचार के मुद्दे छत्तीसगढ़ की राजनीति में होंगे हावी
रायपुर। देश में धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ की राजनीति धान के ईद-गिर्द ही घूमती हुई नजर आती हैं। यहीं वजह है कि राज्य बनने के बाद से अब तक जितने भी चुनाव हुए सभी में धान और किसान, प्रदेश की राजनीति का प्रमुख केंद्र रहे हैं। पिछले चुनावों के आंकड़े भी बताते है कि छत्तीसगढ़ में सत्ता का रास्ता धान से ही खुलता है। डॉ. रमन सिंह हो या फिर भूपेश बघेल दोनों ने ही धान के बोनस पर ही सरकार बनाई है।
किसान और धान काे लेकर प्रदेश की सियासत का पारा चढ़ा हुआ है। चुनाव की बढ़ती सरगर्मी के बीच भूपेश बघेल सरकार का कहना है कि उसने किसानों की कर्ज-माफी और धान खरीदने के लिए एमएसपी पर भुगतान का वादा पूरा किया है। इसके साथ राज्य सरकार ग्रामीण अंचल के लिए दूसरी स्कीमों को ‘किसानों के साथ न्याय’ के रूप में पेश कर रही है। कांग्रेस सरकार का दावा है कि कर्ज माफी के वादे को पूरा कर उसने करीब 18 लाख किसानों को कर्ज से मुक्ति दिलाई। इसके साथ ही फसल की बेहतर क़ीमत दिए जाने से न सिर्फ किसानों में ख़ुशहाली आई है, बल्कि किसान अधिक धान बो रहे हैं।
पिछले साल के आंकड़ों के अनुसार पंजाब के बाद सबसे अधिक धान की खरीद छत्तीसगढ़ में हुई थी। दूसरी ओर विपक्षी भारतीय जनता पार्टी किसान चौपालों के माध्यम से ये समझाने की कोशिश कर रही है कि जो मिल रहा है, वो मोदी सरकार की देन है। बीजेपी नेताओं का कहना है कि केंद्र की मोदी सरकार पिछले साल 21 सौ रुपए भुगतान किया, छग की सरकार ने सिर्फ 5 सौ रुपए दिए वो भी बोनस के रूप में 4 किश्तो में। पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह कहते रहे हैं, ‘दाना-दाना खरीदने का वादा कांग्रेस का, पूरा करे भाजपा। 2,500 रुपये क्विंटल देने का वादा कांग्रेस का, पैसे दे केंद्र सरकार।
प्रदेश के किसान भले ही धान की कीमत और खरीदी से खुश हो, पर 2023 विधानसभा चुनाव में सत्ता की चाबी धान और किसान से निकलना मुश्किल है। इसकी प्रमुख तीन वजह हो सकती है..युवा, महिला और भ्रष्टाचार। प्रदेश में कुल मिलाकर वोटर्स की संख्या 2 करोड़ 03 लाख 60 हजार 240 है। जिसमें से 1 करोड़ 1 लाख 20 हजार 830 पुरुष वोटर्स जबकि 1 करोड़ 2 लाख 39 हजार 410 महिला वोटर्स है। थर्ड जेंडर की संख्या 790 है। 18 लाख 68 हजार 636 नए मतदाता है। इनकी आयु 18 से 22 साल के बीच है।
इन आंकड़ों पर नजर डाले तो महिला वोटर्स की संख्या पुरूषों की तुलना में अधिक है। इसके अलावा 18 लाख से अधिक मतदाता 18 से 22 साल के हैं, मतलब 18 लाख में से ये अधिकतर कॉलेज स्टूडेंट हैं। जो इस बार छत्तीसगढ़ की सत्ता में अहम भूमिका निभाएंगे। 2018 में कांग्रेस सत्ता वापसी के लिए प्रमुख रूप से 36 बिंदुओं पर प्रदेश की जनता से वायदे किए थे। इनमें किसानों की कर्जमाफी और 25 सौ रुपए क्विंटल में धान खरीदी, इसके अलावा युवाओं को 25 सौ रुपए प्रतिमाह बेरोजगारी भत्ता और 10 लाख युवाओं को रोजगार देने का वायदा भी था। वहीं प्रदेश में शराबबंदी का भी घोषणा हुई थी।
सरकार ने कर्जमाफी और किसानों को 25 सौ रुपए क्विंटल देने का वायदा तो पूरा कर दिया, लेकिन प्रदेश में शराबबंदी पांच सालों में सरकार नहीं कर पायी। पूरे पांच साल इस पर पक्ष-विपक्ष में वाद-विवाद, आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला। लेकिन अगर किसी को मायूसी हाथ लगी तो वो प्रदेश की 1 करोड़ से अधिक महिलाओं को। छत्तीसगढ़ की माताओं को यह आस थी कि सरकार शराबबंदी करेगी तो न सिर्फ उनका घर परिवार बचेगा, बल्कि वे आर्थिक रूप से भी सशक्त होंगे, पर उनके इस विश्वास का गला घोंटा गया। इससे प्रदेश की महिलाओं में भारी आक्रोश देखा जा रहा है। महिलाओं का यह आक्रोश कही अभिशाप न बन जाए।
युवाओं की बात करें तो इनके साथ भी महिलाओं की तरह छलावा और धोखा हुआ। इन्हें वायदे के मुताबिक प्रति माह 25 सौ रुपए बेरोजगार भत्ता और 10 लाख युवाओें को रोजगार देना था। बेरोजगारी भत्ता प्रदेश के युवाओं को मिलना तो शुरू हुआ, लेकिन चुनाव के करीब छह महीने पहले, मतलब 60 महीने की जगह महज 4 से 5 माह ही भत्ता मिला। इसमें भी इतने नियम कायदे लागू कर दिए गए कि लाखों युवाओं को मायूसी हाथ लगी। सरकार की दलील है कि पूरे देश में सबसे कम बेरोजगारी छत्तीसगढ़ में है…जबकि सरकार के ही रोजगार विभाग में 19 लाख से अधिक बेरोजगार युवाओं का पंजीयन है। अब पंजीयन के आंकड़े झूठे है या सरकार के दावे, कहना तो मुश्किल है। पर प्रदेश में अगर चपरासी की वेकेंसी भी जारी होती है तो बीए, एमए ही नहीं, बीई और एमबीए वाले भी फार्म भरते नजर आते हैं। इससे पता चलता है कि आंकड़े के सही मायने क्या है। वहीं एसआई और 14 हजार शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया भी पांच सालों में पूरी नहीं हो पायी है।
2023 के इस विधानसभा चुनाव में सबसे अहम मुद्दा साबित होने वाला है…भ्रष्टाचार। प्रदेश की कांग्रेस सरकार पर पांच सालों के दौरान न सिर्फ वायदा खिलाफी के आरोप लगे, बल्कि विपक्षी पार्टियों ने 2 हजार करोड़ का शराब घोटाला, 2 हजार करोड़ रुपए का कोयला घोटाला, गोबर घोटाला, गौठान घोटाला के आरोपों के साथ-साथ शिक्षक भर्ती और सीजी पीएससी भर्ती में सत्तासीन और अफसरों के रिश्तेदारों को नौकरी बांटने के आरोप लगे है। मामला छत्तीसगढ़ के हाईकोर्ट और देश के सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है। शिक्षक और पीएससी भर्ती में गड़बड़ी सिर्फ युवाओं को प्रभावित नहीं करता, बल्कि इससे उसका पूरा परिवार प्रभावित होता है।
डिप्टी कलेक्टर, डीएसपी, सब इंस्पेक्टर, तहसीलदार, नायब तहसीलदार, शिक्षक समेत तमाम पदों पर पहुंचने के लिए युवा न सिर्फ दिन रात सालों तक मेहनत करते हैं, बल्कि कई परिवारों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण अपने बच्चों को पढ़ाने-लिखाने में खेत-खलिहान तक बेचने पड़ते हैं। इसके बाद भी राज्य की सबसे बड़ी प्रतियोगी परीक्षा में अगर पारदर्शिता और निष्पक्षता न हो तो युवाओं को न सिर्फ निराशा हाथ लगती है, बल्कि सोचने और विचार विमर्श करने पर मजबूर करता है। प्रदेश में 18 लाख से अधिक युवा वोटर्स हैं जो अपने आप में सत्ता पटलने की हिम्मत रखते हैं। अब देखना है कि सरकार पर लगे आरोपों पर युवा अपना क्या निर्णय लेते हैं।