आदिवासी हितैषी का ढोंग करने वाली सरकार पूरी राशि खर्च नहीं की, कई योजनाएं भी बंद कर दी….

रायपुर। छत्तीसगढ़ में पिछड़ा वर्ग के बाद सर्वाधिक जनसंख्या आदिवासियों की है। राज्य में कुल 44 फीसदी आबादी अनुसूचित जातियां निवास करती हैं। आदिवासी हितैषी दिखाने हर साल 9 अगस्त को धूमधाम से आदिवासी दिवस मनाया जाता है और करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं। लेकिन प्रदेश मेंं शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में अनुसूचित जनजातियों की हालत क्या है? यह किसी से छिपा नहीं है। छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार जितने जाेरशोर से आदिवासी गौरव का ढ़ोल पीट रही है, उतना ही उसके दावे खोखले साबित हो रहे हैं। हर साल राज्य सरकार कई आयोजन करती हैं लेकिन प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आने के बाद इनके सामाजिक हालात में कोई परिवर्तन तो नहीं आया, बल्कि इनके लिए जारी फंड को सरकार पूरी खर्च भी नहीं कर रही है। वहीं अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के उत्थान के लिए पूर्व सरकार द्वारा संचालित कई योजनाएं भी बंद कर दी गई। जिसके कारण इनके जीवन स्तर में आज भी कोई बदलाव नहीं आया। 

2016-17 मेंं पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने आदिवासी उपयोजना में 1253.43 करोड़ रुपए खर्च का प्रावधान रखा था। इस पर 914 करोड़ रुपए खर्च किए। वहीं अनुसूचित जनजाति  पर 329 करोड़ रुपए व्यय का प्रावधान पर 254 करोड़ रुपए ही खर्च किए। 2017-18 में भाजपा सरकार ने बजट का प्रावधान बढ़ाते हुए 1477.77 करोड़ रुपए का प्रावधान रखा। इनमें 1023 करोड़ रुपए खर्च किए। जबकि अनुसूचित जाति उप योजना पर 327 करोड़ के प्रावधान में 245 करोड़ रुपए खर्च हुए। 

2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस आदिवासी समुदाय के लिए बड़ी बड़ी घोषणाएं और वायदे की थी। कांग्रेस को सत्ता मिली तो आदिवासी उपयोजना की बजट 1630.75 करोड़ रुपए का प्रावधान रखी। जबकि इस पर केवल 969 करोड़ रुपए खर्च की। अनुसूचित जनजाति उपयोजना में 392 करोड़ का प्रावधान था जिस पर 211 करोड़ रुपए ही खर्च की। 2019-20 में 1713 करोड़ का प्रावधान था जिस पर केवल 1113 करोड़ खर्च किए। अनुसूचित जनजाति उपयोजना में 452 करोड़ के प्रावधान पर 276 करोड़ रुपए खर्च किए। 2020-21 में 1612 करोड़ का प्रावधान पर 966 करोड़ खर्च किए। इसी तरह अनूसूचित  जनजाति उपयोजना में 539 करोड़ के प्रावधान पर 343 करोड़ खर्च किए। 2021-22 में कांग्रेस सरकार ने 1595 करोड़ का प्रावधान रखा और 1027 करोड़ रुपए ही खर्च किए। 

यह बजट महज एक आंकड़ा नहीं है बल्कि आदिवासियों को लेकर सरकार की प्राथमिकताएं साबित करता है। सरकारी प्राथमिकताओं में आदिवासी समुदाय का हाल यह है कि सुविधा मुहैया कराने में भी छत्तीसगढ़ फिसड्डी राज्य है। सत्ताधारी कांग्रेस आदिवासी वोटबैंक बनाने की कवायद तो कर रही है लेकिन कल्याण के काम ठंडे बस्ते में डाल दिए हैं।