नई दिल्ली. 2 अप्रैल 2011. मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में वर्ल्ड कप के फाइनल में टीम इंडिया के सामने श्रीलंका की चुनौती थी. टूर्नामेंट की शुरुआत से पहले ही टीम इंडिया खिताब की प्रबल दावेदार मानी जा रही थी और महेंद्र सिंह धोनी की टीम ने ऐसा कर भी दिखाया. हालांकि, 25 जून 1983 को लॉर्ड्स के मैदान में ऐसा नहीं था. वर्ल्ड कप जीतना तो दूर, लोगों को ताज्जुब इस बात पर था कि भारतीय टीम आखिर फाइनल तक पहुंच कैसे गई. लोगों को तो छोडि़ए टीम के ज्यादातर प्लेयर्स को भी यकीन नहीं था कि ऐसा हो सकता है. कपिल देव की लीडरशिप में युवा टीम ने लॉर्ड्स के मैदान में खुद को वर्ल्ड चैंपियन साबित किया था. 25 जून 1983 का दिन ना सिर्फ इतिहास में दर्ज हुआ बल्कि आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा दे गया. एक शो में कपिल देव से सवाल किया गया कि जब भारतीय टीम इंग्लैंड रवाना हुई तो उस समय आपको आइडिया था कि आप वर्ल्ड कप जीत जाएंगे? इस कपिल देव ने कहा कि बिल्कुल भी नहीं, तब तो बस ऐश थी, मजा था पर कॉन्फिडेंस नहीं था. हमने सोचा था मजा करेंगे, खेल को इंजॉय करेंगे. कपिल देव ने आगे कहा कि कई बार हम एक अलग ही सोच के साथ जाते हैं. उस समय ऐसा हुआ जो पहले कभी नहीं हुआ था. इतने मैच तो हमने कभी जीते ही नहीं थे. टूर्नामेंट के दौरान हमें यह एहसास हुआ कि हमारी टीम में दम है. हम वर्ल्ड चैंपियन की दौड़ में किसी से कम नहीं है. कपिल देव ने कहा, शुरुआत में टीम को अपनी काबिलियत का अंदाजा नहीं था, लेकिन दो तीन मैच जीतने के बाद हमार कॉन्फिडेंस बढ़ गया. कप्तान के तौर पर सिर्फ मैं ही मान रहा था कि हम सेमीफाइनल तक पहुंच सकते हैं, पर टीम की सोच ऐसी नहीं थी. कपिल देव ने कहा, आखिर में टीम जागी और क्रिकेट की दुनिया में सनसनी फैल गई. हमने वह कर दिखाया जो अकल्पनीय था. हम विश्व विजेता बन चुके थे. बता दें कि 1983 वर्ल्ड कप के फाइनल में भारत ने 2 बार की वर्ल्ड चैंपियन और एक से बढ़कर एक दिग्गज खिलाड़ियों से भरी वेस्टइंडीज टीम को पटखनी दी थी. टीम इंडिया ने पहले बैटिंग करते हुए 183 रन बनाए थे, जवाब में वेस्टइंडीज महज 140 रन पर ऑलआउट हो गई थी.