Tuesday, February 4, 2025
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जंगल काटकर कब्जा करने पर आदिवासी आक्रोशित , नहीं मिल रहीं सुविधाएं , जमीन पर कब्जा बड़ा मुद्दा

 

बस्तर और सरगुजा के भूगोल से अलग जनजाति सीटों की बात करें तो इसमें तीन पॉकेट आते हैं। पहला मरवाही और पाली – तानाखार, दूसरा बिंद्रावनगढ़ और सिहावा, तीसरा डौंडीलोहारा का है। इन तीनों ही पॉकेट में मुद्दे अलग- अलग हैं। लेकिन आदिवासियों के संदर्भ में एक बात कॉमन है। वह है जमीन की लड़ाई। पेंड्रा से अमरकंटक जाने वाले रूट पर उसाढ़ गांव जब पहुंचे तो लोगों ने भुइंया एप पर गलत रिकॉर्ड दर्ज कर जमीन में खेल के छह प्रकरण बताए।

बताया कि आसपास के कई गांवों में पंचायत और राजस्व विभाग की मिलीभगत से खेल को अंजाम दिया गया। वहीं देवभोग से पहले बाहरी लोगों द्वारा जंगल काटकर कब्जा करने को लेकर आदिवासी आक्रोशित हैं। डौंडी लोहारा में भानुप्रतापपुर और नारायणपुर में चल रहे आदिवासी आंदोलन का प्रभाव है। बाकी वन अधिकार, पेसा कानून धर्मांतरण जैसे मुद्दों की चर्चा यहां भी है।

जीपीएम पहली बार बिना जोगी के

मरवाही में पिछला उपचुनाव जोगी जी के नहीं रहने के कारण हुआ था। इसमें कांग्रेस के केके ध्रुव जीते थे। लेकिन ये चुनाव सिर्फ मरवाही का था। इस बार इस एरिया में होने वाले आम चुनाव में एक लंबे अरसे बाद अजीत जोगी नहीं दिखेंगे। आदिवासियों के बीच जोगी लोकप्रिय थे। इस बार के चुनाव में यही एक्स फैक्टर साबित होगा। इसके अलावा जब जिला गठन की घोषणा हुई तो जीपीएम नाम दिया गया। इसका मतलब था गौरेला-पेंड्रा मरवाही। लेकिन मरवाही में अब तक एक भी प्रशासनिक ईकाई नहीं है। पूरा प्रशासन गौरेला पेंड्रा तक सीमित हो गया है। इसे राजनीतिक तौर पर भुनाने की कोशिश हो रही है। इधर पाली- तानाखार गोंड बहुल विस क्षेत्र है। यहां अब भी आदिवासियों तक बिजली-पानी जैसी समस्याएं बरकरार है।

गौरेला का गुरुकुल आश्रम पर प्रशासन का कब्जा

आदिवासी बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए समर्पित इस कैम्पस पर अब प्रशासन का कब्जा है। स्ट्रांग रूम बनाने के नाम पर बच्चों का स्कूल एक किमी दूर शिफ्ट कर दिया गया। इसे लेकर आदिवासियों में नाराजगी है। आदिवासी नेताओं ने इसके लिए धरना प्रदर्शन भी किया।

बिंद्रावनगढ़ – सिहावा में बाहरी का कब्जा

गरियाबंद ओडिशा से लगा है। उदंती नदी से आगे के हिस्से को देखें तो वहां जंगल के बीच बाहरी लोग पेड़ काटकर बस गए हैं। पिछले कुछ सालों में ये आंदोलन का विषय है। चूंकि जंगल कटने से सबसे ज्यादा प्रभावित आदिवासी होते हैं। यहां भी यही स्थिति है। इसी हिस्से में उदंती अभयारण्य है। यहां जंगल के सीमित इस्तेमाल ने आदिवासियों को मूल स्थान से पलायन करने के लिए मजबूर किया है। बाहरी लोगों के हस्तक्षेप ने इसे जटिल बना दिया है। इसी हिस्से में जैम स्टोन और हीरे के आकूत भंडार हैं।

डौंडीलोहारा में हल्बा निर्णायक

ये छग की इकलौती आदिवासी सीट है जहां दूसरे हिस्सों की तरह सक्रिय आंदोलन नहीं दिखता। यहां के आदिवासी आम लोगों से ज्यादा घुले-मिले हैं। लेकिन इस बार नारायणपुर और भानुप्रतापपुर क्षेत्र में आदिवासियों के अधिकार को लेकर चल रहे आंदोलन का असर यहां दिख रहा है।

यहां आदिवासियों की संख्या

गोंड 3,00,000

कंवर 99440

बैगा 21290

हल्वा 79854

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