रायपुर। छत्तीसगढ़ में इन दिनों विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनितिक पार्टियों की तैयारियां शुरू हो गई है। सभी पार्टी प्रदेश की जनता से जीत के लिए नए – नए वादे कर रहे है। इस बीच कांग्रेस ने चुनाव जीतने के लिए एक बार फिर किसानों का कर्जा माफ़ और बिजली हाफ करने का नारा का ऐलान कर दिया है कि वह इस बार भी किसानों का कर्जा माफ़ करेंगे। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने यह ऐलान करके भाजपा के घोषणा पत्र में शामिल किये जाने वाले मुद्दे का चयन कठिन कर दिया है। ऐसा माना जाता है कि कर्जा माफ़ और बिजली बिल हाफ का नारा पिछले चुनाव में जोरो शोरों से चला। इसी कारण कांग्रेस ने आदिवासी और एससी सीटों पर एकतरफा बढ़त लेकर भाजपा को बुरी तरह मात दी थी।
लगभग 23 लाख से अधिक किसानों से जुड़ा यह सीधा मामला है, जिसमें चुनाव पर अच्छा खासा असर होता है। किसानों को दिया जाने वाला बोनस और कर्जा माफ़ करने का मामला फिर निर्णायक हो सकता है। पिछली बार 20 लाख किसानों का 10 हजार करोड़ रुपए का कर्जा माफ़ किया गया था। वही बीते साल 23 लाख 96 हजार किसानों ने समर्थन मूल्य पर धान बेचा था। इस बार चुनाव में धान का मुद्दा ही एकमात्र रहेगा , ऐसा कहना भी शायद ठीक नहीं होगा।
छत्तीसगढ़ में वैसे तो क्षेत्रवार मुद्दे भी निर्णायक होते है। विधानसभा में प्रत्याशी का चेहरा और स्थानीय मुद्दे को लेकर नाराजगी या समर्थन परिणाम को प्रभावित करते हैं लेकिन राज्य के कामन मुद्दे पर बात करें तो सबसे प्रभावी है धान का बोनस। राज्य सरकार ने डायरेक्ट बेनिफिट देकर इस मामले में बड़े वर्ग को प्रभावित करने का प्रयास किया है। इसके अलावा छत्तीसगढियावाद , धर्मान्तरण पीएससी विवाद सस्ता अनाज यानि फ्रीवीज जैसी योजनाएं इस बार के चुनाव में बड़ा मुद्दा रहेगी। राज्य की सबसे बड़ी समस्या नक्शलवाद चुनाव में कितना निर्णायक हो सकता है, इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता।
प्रदेश का चुनावी परिदृश्य बदला इसलिए घोषणा पत्र में हो रही देरी
धान के मुद्दे पर दोनों तरफ से क्या-क्या रणनीति अपनाई जा सकती है इसका दोनों पक्ष इंतजार कर रहे हैं। कांग्रेस ने कल एक पत्ता खोला है इसके अलावा पूरी रणनीति आनी अभी बाकी है। इसी प्रकार भाजपा ने घोषणा पत्र को लेकर अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। छत्तीसगढ़ में टिकट वितरण के बाद स्थिति स्पष्ट हो गई है। कांग्रेस के 30 और भाजपा 48 नए चेहरे मैदान में हैं। राज्य के चुनाव परिणाम को प्रभावित करने वाले तीन कारक हैं। एसटी यानी आदिवासी, शेड्यूल कास्ट यानी एससी इनके लिए सीट सुरक्षित है। एसटी के लिए 29 और एससी के लिए 10 सीटें आरक्षित हैं। इनके बाद बची हुई 51 सीटों पर ओबीसी और जनरल को मौका मिलता है। इसलिए छत्तीसगढ़ में चुनावी रणनीति तैयार करने वाले इन तीन मोर्चे पर अलग-अलग रणनीति बनाते हैं। पिछली बार की तुलना में इस बार चुनावी परिदृश्य बदला हुआ है।
पत्र में हो रही देरी
धान के मुद्दे पर दोनों तरफ से क्या-क्या रणनीति अपनाई जा सकती है इसका दोनों पक्ष इंतजार कर रहे हैं। कांग्रेस ने कल एक पत्ता खोला है इसके अलावा पूरी रणनीति आनी अभी बाकी है। इसी प्रकार भाजपा ने घोषणा पत्र को लेकर अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। छत्तीसगढ़ में टिकट वितरण के बाद स्थिति स्पष्ट हो गई है। कांग्रेस के 30 और भाजपा 48 नए चेहरे मैदान में हैं। राज्य के चुनाव परिणाम को प्रभावित करने वाले तीन कारक हैं। एसटी यानी आदिवासी, शेड्यूल कास्ट यानी एससी इनके लिए सीट सुरक्षित है। एसटी के लिए 29 और एससी के लिए 10 सीटें आरक्षित हैं। इनके बाद बची हुई 51 सीटों पर ओबीसी और जनरल को मौका मिलता है। इसलिए छत्तीसगढ़ में चुनावी रणनीति तैयार करने वाले इन तीन मोर्चे पर अलग-अलग रणनीति बनाते हैं। पिछली बार की तुलना में इस बार चुनावी परिदृश्य बदला हुआ है।
पिछली बार कांग्रेस और भाजपा के टक्कर में बसपा और जोगी कांग्रेस का गठबंधन था लेकिन इस बार यह गठबंधन नहीं हो पाया है। दोनों पार्टियों ने अपने अलग अलग प्रत्याशी उतारे हैं। इसके अलावा इस बार आप यानी आम आदमी पार्टी भी चुनाव मैदान में है। इसके अलावा हमर राज पार्टी सर्व आदिवासी समाज भी भाग्य आजमा रही है। राज्य गठन के बाद ऐसा पहली बार होगा कि विधानसभा चुनावों में अजीत जोगी की कोई भूमिका नहीं होगी। उनके निधन के बाद उनकी पत्नी रेणु जोगी और पुत्र अमित जोगी ने पार्टी की कमान संभाल रखी है। पिछली बार आदिवासी सीटों पर बुरी तरह मार खाने वाली भाजपा इस बार बस्तर और सरगुजा के आदिवासी इलाकों में नई रणनीति के साथ मैदान में है। भाजपा की कोशिश है कि पुराने परफारमेंस में कुछ सुधार किए जाए। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा कराने के अलावा केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी इन क्षेत्रों में दौरा कर रहे हैं।
तीन भागों में बंटा है राज्य
छत्तीसगढ़ की राजनीति को समझने के लिए यहां की भौगोलिक परिस्थिति को समझना जरूरी है। इसके तहत राज्य को तीन भागों में बांटना पड़ेगा। पहला उत्तर छत्तीसगढ़ जहां सरगुजा संभाग का इलाका आता है। दूसरा दक्षिण छत्तीसगढ़ जहां पर बस्तर संभाग आता है। तीसरा मध्य छत्तीसगढ़ जिसे मैदानी इलाका कहते हैं। इसमें रायपुर, दुर्ग और बिलासपुर संभाग आते हैं।
इन तीन इलाकों के चुनाव परिणाम को अलग-अलग करके देखा जाता है। 2018 में बस्तर में कांग्रेस ने 12 में से 11 सीटें जीती थीं । सरगुजा की सभी 14 सीटें जीतकर एकतरफा बढ़त ली थी। 64 मैदानी सीटों में 43 सीटें कांग्रेस ने जीती थीं। इस तरह कुल 68 सीटें जीतकर कांग्रेस ने भाजपा को 15 सीटों पर रोक दिया था। जोगी कांग्रेस और बसपा के गठबंधन को 7 सीटें मिली थीं जिनमें जोगी कांग्रेस के पांच विधायक थे।
इस बार का चुनावी गणित
28 सीटों पर पूरानो के सामने पुराने नेता
15 सीटों पर नए के सामने नए नेता
47 सीटों पर पुराने के सामने है नए नेता
भाजपा
42 पुराने और 48 नए चेहरे
कांग्रेस
60 पुराने और 30 नए चेहरे
उपचुनाव के बाद कांग्रेस 71 पर
उपचुनाव के बाद कांग्रेस की सीटें 71 हो गई हैं। वैशाली नगर विधायक विद्यारतन के निधन के बाद भाजपा की 13 सीटें हैं। जोगी कांग्रेस के पास केवल एक विधायक रेणु जोगी हैं। धर्मजीत भाजपा में जा चुके हैं। बलौदाबाजार के प्रमोद शर्मा ने इस्तीफा दे दिया है। खैरागढ़ विधायक देवव्रत के निधन के बाद उपचुनाव में कांग्रेस ने कब्जा कर लिया है।
इस बार नया फार्मूला
भाजपा ने टिकट वितरण में नया फार्मूला अपनाया है। ज्यादातर टिकट काटने के बजाय पुराने लोगों पर भरोसा जताया है जो क्षेत्र से परिचित हैं। कांग्रेस ने 90 में से 30 नए चेहरे उतारे हैं। 22 विधायकों का टिकट काटकर एंटीइन्कम्बैसी खत्म करने की कोशिश की है।