शिक्षा

आईटीएम यूनिवर्सिटी ने रचनात्मकता के साथ मनाया इंजीनियर्स डे

रायपुर। आईटीएम विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ़ इंजीनियरिंग एंड रिसर्च ने इंस्टीटूशन्स इनोवेशन कॉउन्सिल (आईआईसी), केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के साथ मिलकर इंजीनियर्स डे पर विविध रचनात्मक कार्यक्रमों का आयोजन किया। कार्यक्रम का शुभारंभ स्कूल ऑफ़ इंजीनियरिंग एंड रिसर्च के हेड डॉ. सत्य प्रकाश माखीजा ने सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करते हुए किया। कार्यक्रम की रुपरेखा पर बोलते हुए डॉ. माखीजा ने कहा कि सन 1968 में भारत सरकार ने 15 सितंबर को राष्ट्रीय इंजीनियर दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। भारत में दुनिया में इंजीनियरों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या है और इसीलिए कई बार भारत को इंजीनियरों का देश भी कहा जाता है। यह दिन सभी इंजीनियरों को सर विश्वेश्वरैया को अपना आदर्श बनाने और देश की भलाई के लिए लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में काम करने के लिए एक अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है। इसी कड़ी में आईटीएम यूनिवर्सिटी ने इंजीनियर्स डे रचनात्मक तरीके से सेलिब्रेट किया। एनआईटी रायपुर के प्रोफेसर डॉ राजेश डोरिया ने क्लाउड कंप्यूटिंग पर एक्सपर्ट टॉक दिया। इसके बाद प्रोजेक्ट प्रेजेंटेशन (प्रोजेक्ट प्रस्तुति), इनोवेशन टेक टॉक एवं टेक्निकल डम्ब श्रेड्स (मूक अभिनय) जैसे गेम्स का रोमांचक आयोजन किया गया। कार्यक्रम का आयोजन डॉ. मोहित साहू और डॉ. रक्तिम देब ने किया। कार्यक्रम का संचालन स्टूडेंट्स आरुषि डाबली और प्रवीण सिंग ने किया। कार्यक्रम में डॉ. नितिन जायसवाल, डॉ पूजा श्रीवास्तव, शर्मिष्ठा पुहान, नितिका शर्मा, अर्चना मिश्रा, डॉ. अंकित अग्रवाल, डॉ. जय गोडेजा, जूही सिंह राजपूत एवं अशोक राउत उपस्थित थे। प्राध्यापकों ने विद्यार्थियों को सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के जीवन से जुड़ी बातें बताई ताकि सभी को महान कार्य करने की प्रेरणा मिल सके।

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सर विश्वेश्वरैयाका जन्म 15 सितंबर, 1861 को कर्नाटक में हुआ था। बाद में उन्होंने कला स्नातक के लिए अध्ययन करने के लिए मद्रास विश्वविद्यालय में भाग लिया। बाद में जीवन में उन्होंने करियर के रास्ते बदलने का फैसला किया और पुणे के कॉलेज ऑफ साइंस में सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा पूरा किया। 1955 में भारत के निर्माण में उनके असाधारण योगदान के लिए उन्हें ‘भारत रत्नÓ से सम्मानित किया गया था। उन्होंने ब्रिटिश नाइटहुड से भी सम्मानित किया है और 1912 से 1918 तक मैसूर के दीवान के रूप में कार्य किया है। ‘ब्लॉक सिस्टमÓ के निर्माण का श्रेय सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को जाता है। उन्होंने पानी की आपूर्ति के स्तर और भंडारण को बढ़ाने के लिए पुणे के पास एक जलाशय में वाटर फ्लडगेट के साथ एक सिंचाई प्रणाली का पेटेंट कराया और स्थापित किया। यह सिंचाई प्रणाली जो खड़कवासला जलाशय में स्थापित की गई थी, बाद में ग्वालियर के तिगरा बांध और मैसूर में कृष्णराज सागर जलाशय, केआरएस बांध में स्थापित की गई थी।

 

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